शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

विश्व गुरु भारत! (-निर्मल एहसास)


आज सुबह शीघ्र उठकर स्नानादि से निवृत होने के पश्चात आज चित कुछ विचलित सा लग रहा था,फिर अचानक हृदय में अभिलाषा हुई कि चलो आज बांसुरी बजाई जाये परन्तु मैं असफल रहा तो मैंने बांसुरी बजाना छोड़ दिया,फिर सोचा कि चलो कोई पुस्तक पढ़ते हैं शायद हृदय को कुछ अच्छा महसूस हो मैं बच्चन जी की मधुशाला की तरफ बढ़ा ही था कि मेरी दृष्टि यथार्थ गीता पर पड़ी जो बिल्कुल मह्यूस सी आलमारी के किसी कोने में रखी थी मुझे खुद पर बड़ा क्रोध आया क्योंकि अबकी कई दिनों से मैंने गीता नहीं पढ़ी थी। मैं गीता पढ़ने बैठ गया मेरी आदत है कि मैं कवर जरूर पढ़ता हूं कहीं पर लिखा था कि 'श्रीमद्भागवतगीता' को 'राष्ट्रीय पुस्तक' घोषित कर देना चाहिए,मेरे हृदय में विचार आया कि गीता का देवकी पुत्र भगवान ने अपने श्रीमुख से गायन किया है उनकी वाणी की अंतः प्रेरणा से सम्पूर्ण मानव जाति को जो अर्थ और सूत्र प्राप्त हुए हैं वे निश्चित ही सराहनीय हैं ,गीता मानव जीवन का सार है अतः इसे राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने में कोई विवाद नहीं होना चाहिए। इतना कहकर मैं कुछ देर तक शांत बैठा रहा जाने मस्तिष्क में क्या चल रहा था फिर अचानक से मेरे चुप्पी टूटी और मुझे खुद पर बहुत हंसी आयी और शायद समस्त हिन्दुस्तानियों पर जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, जिनको सुनकर एक पल के लिए लगेगा की इनसे श्रेष्ठ धर्मानुयायी और उनसे बड़ा देशभक्त इस अखिल ब्रह्माण्ड में में कहीं भी संभव नहीं । फिर मुझे कई स्लोगन याद आए जो शायद आप भी प्राय: लोगों के मुख से सुनते रहे होंगे, जैसे- 'हमारा भारत विश्व गुरु था' या 'सोने की चिड़िया'या 'मुझे अपना राष्ट्र बहुत प्रिय है' या 'मैं नारियों को बहुत सम्मान देता हूं'या 'हमें साफ सफाई रखनी चाहिए'वगैरह वगैरह। फिर यही लोग किसी दूसरे चौराहे पर पांच रूपए का पान चबा के चौराहे से लेकर गलियों तक पेंट करते हुए आयेंगे और सुबह उठकर अपने दरवाजे पर कूड़ा साफ करके पड़ोसी के आगे बढ़ा देंगे और फिर ये सभ्य लोग एक-दूसरे के पूरे खानदान को अपनी पवित्र गालियों से नवाजेंगे और हमेशा की तरह पुलिस आएगी और पांच-पांच सौ रुपए देकर मामला रफा-दफा हो जाएगा और समय-समय पर इन श्रेष्ठ कार्यों की पुनरावृत्ति होती रहेगी,या कि फेसबुक,ट्विटर आदि पर उसी भारत को गाली देते मिलेंगे, अपने देश में तो ये समस्या है ,अपने देश‌ में तो वो समस्या है और कुछ सभ्य लोग चौराहे पर खड़े होकर लड़कियों के निकलने पर अपने संगीत का अभ्यास करने लगेंगे,इसी तरह से अन्य खबरें आयेंगी। इतना ‌‌‌‌‌सब करने के पश्चात फिर इनकी देशभक्ति जागृत होगी फिर ये कहेंगे कि अपने देश में कोई सही कानून ही नहीं है और हर चीज के लिए एक नियम बताएंगे..आदि। अब मैं पुनः मुद्दे पर आता हूं, यह सब सुनकर ह्रदय में बहुत टीस होती है,क्यों हम लोग हर वक्त सिर्फ उलाहने देते रहते हैं,किसी श्रेष्ठ कृत्य को करने के लिए क्यों किसी संवैधानिक नियम की आवश्यकता है यदि है तो हम कितने नियम मानते हैं जोकि पहले से बने हुए हैं? कितने लोग ट्रैफिक नियम मानते हैं? कितने लोग कूड़ा डस्टबिन में ही डालते हैं? आप लोग कुछ नहीं कर सकते बस बड़ी-बड़ी बातें कर सकते हैं, गाली दे सकते हैं, अपनी गलती दूसरों पर थोप सकते हैं... क्यों हमारे देश में अखबार दुष्कर्मों की ख़बरों से भरे रहते हैं आखिर क्यों? कितने लोग गीता पढ़ते हैं? जब नहीं पढ़ते तो क्या करेंगे 'राष्ट्रीय पुस्तक'घोषित करके? जब आप लोग अपनी सोच पाक नहीं कर सकते तो 'विश्वगुरु' बनकर दुनिया को क्या उपदेश देंगे? भारत ऋषि-मुनियो का देश है यह कहकर अपने आपको महान बताने से कुछ नहीं होगा। रही बात महिला संरक्षण की तो जब आप महिलाओं का सम्मान ही नहीं करते तो कितने भी कानून बनाये जाएं आपकी हैवानियत को नहीं मार सकते क्योंकि आप स्वयं ही उसे जन्म देते हैं तो आप ही मार भी सकते हैं; डॉ.राहत इंदौरी का एक शेर है कि: "ना राह से,न रहगुजर से निकलेगा, तुम्हारे पांव का कांटा तुम्ही से निकलेगा" आखिर क्यों आप लोग चाहते हैं कि एक व्यक्ति जो किसी प्रशासनिक सेवा पर है बस उसी की सब ज़िम्मेदारी है ,क्या यह मुल्क सिर्फ उसी का है? हमारा नहीं? हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं? यदि देश हमारा है तो जिम्मेदारी भी होगी और इसे निभाना भी होगा। किसी एक व्यक्ति से यह उम्मीद रखना मूर्खता होगी बल्कि खुद से उम्मीद रखनी है , हमें बस अपना दायित्व ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌निर्वाह करना है और मानसिक विकलांगता को दूर करना है। "आत्म दीपो भव:" और मेरा मानना है कि भारत को 'विश्वगुरु' बनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत आज भी 'विश्वगुरु' है, भारत 'सोने की चिड़िया' आज भी है बस चिड़िया थोड़ा उड़ गई है, हो सके तो उसे ही निहार लो । जिस दिन हमने स्वयं को जान लिया उसके पश्चात हमे बाहर झांकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। धन्यवाद ...✍️✍️✍️ निर्मलएहसास 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌-©निर्मलएहसास गोला-गोकर्णनाथ,लखीमपुर-खीरी,उ.प्र.(भारत) Gmail: nkvnirmal7777@gmail.com

कोहबर की शर्त

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