शनिवार, 31 दिसंबर 2022
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
जानती हो सामने आओगी फिर तुम,
हार जाऊंगा समर जीता हुआ,
या कि होती प्रेम की देवी सरीखीं तुम,
देख पातीं यह हृदय रीता हुआ,
इसलिये यह इन्द्रधनुषी रंग भर लो,
ओढ़नी धानी न मेरे हांथ आये,
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
इस वरष ना साथ आयें..
.
फिर यदि अमृत घड़ों में विष मिलेगा,
और हालाहल नहीं मैं पी सकूंगा,
मैं नहीं शिव हूं मनुष वासुंधरा का,
बनके शिव हरगिज नहीं मैं जी सकूंगा,
मुझसे अपने मोंह की चूनर हटा लो,
आंख में मेरी न ये बरसात आये,
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
इस वरष ना साथ आयें..
.
जानता हूं तुम बिना पतझड़ है मौसम,
और यादों का सावन पीर देगा,
लौटकर तुम पास भी ना आ सकोगे,
और यह संताप मन को चीर देगा,
फिर भी तुम खिलना ही मन उपवन में अपने,
मेरी खिड़की पर ना यह वातास आये,
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
इस वरष ना साथ आयें..
- निर्मल एहसास
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
कोहबर की शर्त
गुनाहों का देवता आपने पढ़ी ही होगी,गुनाहों का देवता पढ़ते हुए अक्सर लगता था कि ऐसी मुकद्दस प्रेम कहानी भला कहाँ मिलेगी..धर्मवीर भारती अद्विती...
-
सरोज अपने चाचा के साथ नहर पर गया हुआ था अपने जानवरों को नहलाने के लिए। रोज की भांति अपने घर के करीब पहुंचकर उसने जानवर छोड़ दिये और ...
-
मन सन्यासी हो जायेगा.. प्रतिबन्धों से आहत होकर चीखें जब बाहर निकलेंगी, और दुनिया के कानों में भी दर्द सुनाई दे ...
-
..अञ्चल आये दिन घाट पर टहलने जाया करता था, बनारस के घाटों की खुशबू वही जान सकता है जिसने इसे स्वयं महसूस किया हो।अञ्चल कभी अपने दो...