मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

एक कहानी बचपन सी

..अञ्चल आये दिन घाट पर टहलने जाया करता था, बनारस के घाटों की खुशबू वही जान सकता है जिसने इसे स्वयं महसूस किया हो।अञ्चल कभी अपने दोस्तों के साथ घाट पर आता तो कभी अकेले । मैं भी कभी कभार घाट पर जाया करता था। मैं जब भी घाट पर जाता मुझे अञ्चल वहीं खड़ा मिलता मानो गंगा की लहरों से उसका बहुत गहरा नाता हो। मैंने अञ्चल के व्यक्तित्व में एक परिवर्तन महसूस किया। जब भी अञ्चल अपने दोस्तों के साथ होता तो ऐसा लगता मानो उससे खुश व्यक्ति कोई है ही नहीं,वो उसका हंसी मजाक करना , सबको हंसाना, ठहाके लगाना , मुझे बहुत अच्छा लगता था, पर जिस दिन वह अकेले घाट पर आता तो इतना माह्यूस, गुमसुम, कहीं खोया हुआ सा, मानो गंगा की पावन लहरों से मन ही मन कोई प्रश्न कर रहा हो , इस तरह टकटकी लगाए हुए गंगा को देखता जैसे गंगा की शीतल लहरों को गिन रहा हो और उन्हें अपने अंतस में विलीन कर लेना चाहता हो,समा लेना चाहता हो। इस तरह के अञ्चल को देखकर के लगता कि कल जो खिलखिलाता हुआ अञ्चल था उसने एक मखोटा पहना हुआ था या फिर मेरी आंखों का भरम। इस तरह से उसको देखकर के मन करता कि उसके पास जाऊं , उससे दोस्ती करूं और उससे बातें करूं ताकि ये उदासी के बादल उसके चेहरे से छट जाएं लेकिन मैं उसका एकांत भंग नहीं करना चाहता था..शायद इसीलिए वो यहां आता भी हो.. मुझे उसके बारे में जानने की बहुत उत्सुकता थी मगर कैसे जानें , मन में रह रहकर प्रश्न उठते रहते थे कि आखिर वह ऐसा क्यों है और शायद वो अपना दुःख बांटना भी नहीं चाहता था.. जो भी हो लेकिन अञ्चल बहुत अच्छा लड़का था, उसे छोटे छोटे बच्चों से बहुत प्रेम था वो उनकी मदद किए बिना नहीं राह पाता था, घाट पर चीजें खरीद खरीद कर बच्चो में बांटता ही रहता था, अञ्चल जब भी बच्चों को देखता खुश हो जाता और दो घड़ी देखने के बाद एकदम हताश हो जाता.. दरअसल बात 4 साल पहले की थी जब अञ्चल इलाहाबाद में रहता था..तब वह बहुत खुश रहा करता था क्योंकि तब उसके साथ उसकी सबसे अच्छी दोस्त दृष्टि भी होती थी। वह और दृष्टि हमेशा साथ साथ ही रहते थे, दृष्टि की उम्र 11 साल और अञ्चल 13 साल का था। दोस्ती की चलती फिरती मिसाल थे दोनों। दोस्ती ही एक ऐसा बंधन है जिसमें कोई बंधन नहीं होता एक दूसरे के लिए हमेशा तैयार रहते थे दोनों, उनको एक दूसरे की ही परवाह रहती थी... चहचहाते हुए चिड़ियों की तरह इधर उधर फुदकते रहते थे, सच पुंछो तो अञ्चल ने हंसना चहचहाना दृष्टि से ही सीखा था, दृष्टि इतना मीठा बोलती थी कि कोई भी उसकी आवाज का कायल हो सकता था , ऐसी आवाज जिसमें मादकता नहीं थी बस मिठास ही मिठास और तीखापन तो कोसों दूर था ,दृष्टि बहुत छोटी थी इसलिए भी चंचलता से परिपूर्ण थी। वो किसी को भी रोता हुआ या उदास देखना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी, उसने अञ्चल से वादा लिया था कि वो सदा खुश रहेगा बार बार यही कहा करती कि अञ्चल! तुम ऐसे ही हमेशा मुस्कराते रहना खुशियां बांटते रहना.. एक दिन दृष्टि को अचानक से दिल का दौरा पड़ा और मासूम दृष्टि इस अटैक को सहन न कर सकी और सबको हंसाने वाली दृष्टि आज सबको रुलाकर जा रही थी, अंचल की आंखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे क्योंकि उसकी सबसे अच्छी दोस्त आज उससे दूर जा चुकी थी, अञ्चल को ये पीड़ा सबसे ज्यादा सता रही थी कि अच्छे लोग इतने कम दिनों के लिए इस धारा पर क्यों आते हैं.. दो साल बीत गए अञ्चल अब भी उस नन्ही सी चिड़िया की उड़ानें नहीं भूल पा रहा था जिसने अभी उड़ना सीखा भी नहीं था, अपनी बल्किनी से बाहर ना जाने क्या देखता रहता.. उसका बचपन जैसे अतीत में कहीं डूबा जा रहा था..उसके घर वालों ने सोचा कि अगर यहां रहेगा तो यूं ही बिलखता रहेगा इसलिए वे अलाहाबाद से बनारस आ गए..लेकिन इलाहाबाद की यादें लिए गंगा नदी बनारस में भी थी.. मेरे लाख पता करने पर मुझे ये मालूम हुआ। पर आज अञ्चल ज्यादा रो रहा था, इससे पहले वह उदास जरूर रहता था लेकिन मैंने कभी उसे रोते हुए नहीं देखा था, मुझे लगा कि मेरे ये सब याद दिलाने की वजह से ही वह रो रहा है लेकिन वह इसलिए रो रहा था क्योंकि आज के दिन ही 4 साल पहले ये सब हुआ था.. मैंने उसे शांत कराया और समझाया, "तुम कहते हो कि दृष्टि तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त थी लेकिन मुझे लगता है कि तुम दृष्टि के अच्छे दोस्त नहीं हो, तुम उसे समझ नहीं सके,तुम उसकी बात भी नहीं मानते हो।" उसने कहा,"आप ऐसा कैसे कह सकते हो? मैं दृष्टि की हर बात मानता था, वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है।" इस पर मैंने कहा,"तो रोना धोना बंद करो क्योंकि दृष्टि को इसी से सबसे ज्यादा दुःख होगा। दृष्टि कभी किसी को उदास देखना पसंद नहीं करती थी फिर भला तुम्हें रोता हुआ वो कैसे पसंद करेगी। इस तरह खामोश रहकर तुम उसको और दुःख पहुंचा रहे हो, उसने तुमसे ये वादा लिया था कि तुम सदैव मुस्कराते रहोगे।" दृष्टि ने कहा था,"अञ्चल तुम ऐसे ही सदैव मुस्कराते रहना.." इसके बाद अञ्चल खुश रहने लगा क्योंकि उसने अपनी दोस्त की बात मान ली थी.. वह अब भी घाट पर आता रहता है लेकिन उस मुखौटे वाली मुस्कान के साथ नहीं और नाही घोर उदासी के बादल लेकर आता है.. अगर आप के साथ ऐसा कुछ हुआ है तो इसपर रोने से बेहतर है कि यह सोचे की वह सख्स क्या चाहता था, उसकी इच्छा क्या थी, उसकी खुशी किसमे थी, वो तुम्हें किस तरह पसंद करता था, या तुम्हें किस ऊंचाई पर देखना चाहता था, वो सख्स जो आप को सर्वाधिक प्रिय हो वह कभी नहीं चाहेगा कि आप अपना जीवन निर्मूल बना लें..दुखों का यह सिंधु तो बना ही रहता है लेकिन साथ ही सुखों कि लहरें भी उठती रहती हैं.. अतः दुखों को खुद पर हावी ना होने दें सदैव हंसते रहिए, खुशियां बिखेरते रहिए
धन्यवाद
-निर्मल एहसास

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