गुरुवार, 27 जनवरी 2022

मन संन्यासी हो जायेगा..

मन सन्यासी हो जायेगा..
प्रतिबन्धों से आहत होकर
चीखें जब बाहर निकलेंगी,
और दुनिया के कानों में भी
दर्द सुनाई दे जायेगा,
इस दुनिया की रीति अलग है
प्रेम मुनासिब यहां नही अब,
लोगों को इन बातों की जब
वक्त गवाही दे जायेगा,
पत्थर के महलों तक जब तक मेरे आंसू पहुंचेंगे,
देह राख हो जायेगी और मन अविनासी हो जायेगा,
मन सन्यासी हो जायेगा..
मेरी आंखों के कुछ आंसू
जो इन गीतों में खोये हैं,
एक दिन चेहरे के आंगन में
बादल बनकर छा जायेंगे,
सावन की मदमस्त हवाएं
जब खुशबू से अलग लगेंगी,
और पपीहे कोयल भी
मेरा एहसास दिला जायेंगे,
जब तेरे अधरों पर छाकर बोलेंगे कुछ गीत हमारे,
गीत अमर हो जायेंगे और मन‌ वनवासी हो जायेगा,
मन सन्यासी हो जायेगा..
- निर्मल एहसास

बुधवार, 26 जनवरी 2022

यशोधरा

प्रेम का सबसे गहरा मानक बतला देना,
महाकाव्य का मझे कथानक बतला देना,
जीत-पराजय हंसते हंसते सह लेंगे,पर
छोड़ के जाना कभी अचानक बतला देना..
.
संन्यासी मन हो जीवन का युद्ध‌ बने थे,
यज्ञ की आहुति से भी ज्यादा शुद्ध बने थे,
बतला देते यशोधरा को भी कुछ दर्शन,
छोड़के उसको जब तुम गौतम बुद्ध बने थे..
निर्मल एहसास

मंगलवार, 25 जनवरी 2022

सहसा चटकेगी कविता...

सहसा चटकेगी
'कविता
उस कविता के सार से
एक 'कहानी' गढूंगा
फिर बहुत सारी
..कहानियां जोड़कर
लिखूंगा 'उपन्यास'
और उसमें तुम मैं और
जीवन के अलग-अलग रं ग
बि ख रे हों गे
किसी और के नाम से
अपनी मेज पर कोहनी टिकाए,
खाली पन्नों पर..
अक्सर सोचता हूं
..'मैं'
निर्मल एहसास

घेरे में..

अमानवीकरण के इस दौर में मानवता की बात करना ही शायद किसी को हास्यास्पद लगे खैर... समाज में परिवर्तन के साथ ही सत्य की परिभाषा भी परिवर्तित हुई है...न्याय-अन्याय के मानक बदले हैं। कोई घटना घृणित है या नहीं इस तथ्य का आकलन हमारी तात्कालिक राजनीतिक और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर होता है । हम किसी कृत्य या कुकृत्य का निर्धारण करने से पूर्व अपनी राजनीतिक या धार्मिक मान्यताओं को सबसे आगे रखते हैं और तटस्थता से न्याय नहीं कर पाते। अब अगर राष्ट्र में कुछ भी असंगत हुआ है तो यह खोजना कि किस तरह अपनी मान्यताओं से उसकी असम्बद्धता निर्धारित की जाये और दलदल में पत्थर इस तरह मारा जाये कि मुझे छोड़कर कीचड़ सामने वाले की कमीज पर जा गिरे... जब आप पहले से ही कुछ मानकर चलते हैं और उस घेरे से बाहर नहीं निकल पाते, क्योंकि आपका अहम् आप पर बहुत ज्यादा हावी है...और तब शुद्ध न्याय की उम्मीद ही व्यर्थ है... -निर्मल एहसास

कोहबर की शर्त

गुनाहों का देवता आपने पढ़ी ही होगी,गुनाहों का देवता पढ़ते हुए अक्सर लगता था कि ऐसी मुकद्दस प्रेम कहानी भला कहाँ मिलेगी..धर्मवीर भारती अद्विती...