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मंगलवार, 25 जनवरी 2022

सहसा चटकेगी कविता...

सहसा चटकेगी
'कविता
उस कविता के सार से
एक 'कहानी' गढूंगा
फिर बहुत सारी
..कहानियां जोड़कर
लिखूंगा 'उपन्यास'
और उसमें तुम मैं और
जीवन के अलग-अलग रं ग
बि ख रे हों गे
किसी और के नाम से
अपनी मेज पर कोहनी टिकाए,
खाली पन्नों पर..
अक्सर सोचता हूं
..'मैं'
निर्मल एहसास

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

एक कहानी बचपन सी

..अञ्चल आये दिन घाट पर टहलने जाया करता था, बनारस के घाटों की खुशबू वही जान सकता है जिसने इसे स्वयं महसूस किया हो।अञ्चल कभी अपने दोस्तों के साथ घाट पर आता तो कभी अकेले । मैं भी कभी कभार घाट पर जाया करता था। मैं जब भी घाट पर जाता मुझे अञ्चल वहीं खड़ा मिलता मानो गंगा की लहरों से उसका बहुत गहरा नाता हो। मैंने अञ्चल के व्यक्तित्व में एक परिवर्तन महसूस किया। जब भी अञ्चल अपने दोस्तों के साथ होता तो ऐसा लगता मानो उससे खुश व्यक्ति कोई है ही नहीं,वो उसका हंसी मजाक करना , सबको हंसाना, ठहाके लगाना , मुझे बहुत अच्छा लगता था, पर जिस दिन वह अकेले घाट पर आता तो इतना माह्यूस, गुमसुम, कहीं खोया हुआ सा, मानो गंगा की पावन लहरों से मन ही मन कोई प्रश्न कर रहा हो , इस तरह टकटकी लगाए हुए गंगा को देखता जैसे गंगा की शीतल लहरों को गिन रहा हो और उन्हें अपने अंतस में विलीन कर लेना चाहता हो,समा लेना चाहता हो। इस तरह के अञ्चल को देखकर के लगता कि कल जो खिलखिलाता हुआ अञ्चल था उसने एक मखोटा पहना हुआ था या फिर मेरी आंखों का भरम। इस तरह से उसको देखकर के मन करता कि उसके पास जाऊं , उससे दोस्ती करूं और उससे बातें करूं ताकि ये उदासी के बादल उसके चेहरे से छट जाएं लेकिन मैं उसका एकांत भंग नहीं करना चाहता था..शायद इसीलिए वो यहां आता भी हो.. मुझे उसके बारे में जानने की बहुत उत्सुकता थी मगर कैसे जानें , मन में रह रहकर प्रश्न उठते रहते थे कि आखिर वह ऐसा क्यों है और शायद वो अपना दुःख बांटना भी नहीं चाहता था.. जो भी हो लेकिन अञ्चल बहुत अच्छा लड़का था, उसे छोटे छोटे बच्चों से बहुत प्रेम था वो उनकी मदद किए बिना नहीं राह पाता था, घाट पर चीजें खरीद खरीद कर बच्चो में बांटता ही रहता था, अञ्चल जब भी बच्चों को देखता खुश हो जाता और दो घड़ी देखने के बाद एकदम हताश हो जाता.. दरअसल बात 4 साल पहले की थी जब अञ्चल इलाहाबाद में रहता था..तब वह बहुत खुश रहा करता था क्योंकि तब उसके साथ उसकी सबसे अच्छी दोस्त दृष्टि भी होती थी। वह और दृष्टि हमेशा साथ साथ ही रहते थे, दृष्टि की उम्र 11 साल और अञ्चल 13 साल का था। दोस्ती की चलती फिरती मिसाल थे दोनों। दोस्ती ही एक ऐसा बंधन है जिसमें कोई बंधन नहीं होता एक दूसरे के लिए हमेशा तैयार रहते थे दोनों, उनको एक दूसरे की ही परवाह रहती थी... चहचहाते हुए चिड़ियों की तरह इधर उधर फुदकते रहते थे, सच पुंछो तो अञ्चल ने हंसना चहचहाना दृष्टि से ही सीखा था, दृष्टि इतना मीठा बोलती थी कि कोई भी उसकी आवाज का कायल हो सकता था , ऐसी आवाज जिसमें मादकता नहीं थी बस मिठास ही मिठास और तीखापन तो कोसों दूर था ,दृष्टि बहुत छोटी थी इसलिए भी चंचलता से परिपूर्ण थी। वो किसी को भी रोता हुआ या उदास देखना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी, उसने अञ्चल से वादा लिया था कि वो सदा खुश रहेगा बार बार यही कहा करती कि अञ्चल! तुम ऐसे ही हमेशा मुस्कराते रहना खुशियां बांटते रहना.. एक दिन दृष्टि को अचानक से दिल का दौरा पड़ा और मासूम दृष्टि इस अटैक को सहन न कर सकी और सबको हंसाने वाली दृष्टि आज सबको रुलाकर जा रही थी, अंचल की आंखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे क्योंकि उसकी सबसे अच्छी दोस्त आज उससे दूर जा चुकी थी, अञ्चल को ये पीड़ा सबसे ज्यादा सता रही थी कि अच्छे लोग इतने कम दिनों के लिए इस धारा पर क्यों आते हैं.. दो साल बीत गए अञ्चल अब भी उस नन्ही सी चिड़िया की उड़ानें नहीं भूल पा रहा था जिसने अभी उड़ना सीखा भी नहीं था, अपनी बल्किनी से बाहर ना जाने क्या देखता रहता.. उसका बचपन जैसे अतीत में कहीं डूबा जा रहा था..उसके घर वालों ने सोचा कि अगर यहां रहेगा तो यूं ही बिलखता रहेगा इसलिए वे अलाहाबाद से बनारस आ गए..लेकिन इलाहाबाद की यादें लिए गंगा नदी बनारस में भी थी.. मेरे लाख पता करने पर मुझे ये मालूम हुआ। पर आज अञ्चल ज्यादा रो रहा था, इससे पहले वह उदास जरूर रहता था लेकिन मैंने कभी उसे रोते हुए नहीं देखा था, मुझे लगा कि मेरे ये सब याद दिलाने की वजह से ही वह रो रहा है लेकिन वह इसलिए रो रहा था क्योंकि आज के दिन ही 4 साल पहले ये सब हुआ था.. मैंने उसे शांत कराया और समझाया, "तुम कहते हो कि दृष्टि तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त थी लेकिन मुझे लगता है कि तुम दृष्टि के अच्छे दोस्त नहीं हो, तुम उसे समझ नहीं सके,तुम उसकी बात भी नहीं मानते हो।" उसने कहा,"आप ऐसा कैसे कह सकते हो? मैं दृष्टि की हर बात मानता था, वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है।" इस पर मैंने कहा,"तो रोना धोना बंद करो क्योंकि दृष्टि को इसी से सबसे ज्यादा दुःख होगा। दृष्टि कभी किसी को उदास देखना पसंद नहीं करती थी फिर भला तुम्हें रोता हुआ वो कैसे पसंद करेगी। इस तरह खामोश रहकर तुम उसको और दुःख पहुंचा रहे हो, उसने तुमसे ये वादा लिया था कि तुम सदैव मुस्कराते रहोगे।" दृष्टि ने कहा था,"अञ्चल तुम ऐसे ही सदैव मुस्कराते रहना.." इसके बाद अञ्चल खुश रहने लगा क्योंकि उसने अपनी दोस्त की बात मान ली थी.. वह अब भी घाट पर आता रहता है लेकिन उस मुखौटे वाली मुस्कान के साथ नहीं और नाही घोर उदासी के बादल लेकर आता है.. अगर आप के साथ ऐसा कुछ हुआ है तो इसपर रोने से बेहतर है कि यह सोचे की वह सख्स क्या चाहता था, उसकी इच्छा क्या थी, उसकी खुशी किसमे थी, वो तुम्हें किस तरह पसंद करता था, या तुम्हें किस ऊंचाई पर देखना चाहता था, वो सख्स जो आप को सर्वाधिक प्रिय हो वह कभी नहीं चाहेगा कि आप अपना जीवन निर्मूल बना लें..दुखों का यह सिंधु तो बना ही रहता है लेकिन साथ ही सुखों कि लहरें भी उठती रहती हैं.. अतः दुखों को खुद पर हावी ना होने दें सदैव हंसते रहिए, खुशियां बिखेरते रहिए
धन्यवाद
-निर्मल एहसास

रविवार, 12 अप्रैल 2020

कहानी: टूटते रिश्ते निर्मल एहसास

सरोज अपने चाचा के साथ नहर पर गया हुआ था अपने जानवरों को नहलाने के लिए। रोज की भांति अपने घर के करीब पहुंचकर उसने जानवर छोड़ दिये और घर आकर टीवी देखने लगा। उधर चाचा का लड़का विशाल सरोज पर चीखता हुआ घर में आया। बिच्छी का पौधा भैंस खा गयी थी इसलिए विशाल सरोज पर चीख रहा था जबकि ये कोई नई बात नहीं थी सरोज हमेशा घर के पास आकर जानवर छोड़ देता था, और चचा जानवर बांध दिया करते थे। सरोज को ये अच्छा नहीं लगा क्योंकि कई दिनों से विशाल हर बात चिल्लाकर ही बताता था। इस पर सरोज ने कहा कि आप कोई बात सीधे तौर पर नहीं बता सकते हर बार चीखना अनिवार्य है क्या? तो विशाल ने कहा कि तुम्हारे बाप को कौन सी तमीज है वो भी हम पर चिल्लाते रहते हैं।इस पर सरोज ने कहा कि उन्हें हक है वो तुम्हें डांट सकते है, तुम्हें उनको जवाब देने का अधिकार नहीं है,तुम्हारे पिताजी पर में कभी नहीं चीखता। धीमे-धीमे बात ज्यादा बिगड़ने लगी। सरोज की आंखें भर आईं उसने कहा तुम्हें किसी से सही बात नहीं करनी आती जब तुम अपनी मां पर चिल्ला सकते हो, पापा पर चिल्ला सकते हो तो मेरी औकात ही क्या है? धीमे धीमे सरोज के पापा और विशाल में भी बातचीत बढ़ गई। बड़े भाई की पत्नी ने विशाल से कहा कि अब शांत हो जाओ सरोज रोने लगा है लेकिन विशाल लगातार चिल्ला रहा था।भाभी ने कहा कि मम्मी से जब बात चीत होती है तो सब मेरी ही गलती देते हैं लेकिन में कुछ नहीं कहती।भाभी के समझाने पर भी विशाल चिल्ला रहा था... सरोज बिन मां का लड़का था, थोड़ी सी बात भी उसे बहुत दुख पहुंचती थी और कुछ माह पहले उसकी लाडली बहन का देहांत भी हो गया था। और सरोज अंदर ही अंदर दुखी रहने लगा था.. धीमे धीमे ये बातचीत बहन तक पहुंच गई तब सरोज को ये सहन ना हुआ।उसी वक्त भाभी भी सरोज से कुछ कह रही थीं, जिस वक्त विशाल ने उसकी बहन का नाम लिया और सरोज ने कहा कि अगर मेरी बहन कुछ काम नहीं करती थी तो रोते काहे थे उसके मरने पर, और इतनी ही दिक्कत हो रही है तो बंटवारा कर लो सारी दिक्कत ख़तम हो जाएगी और कुछ ही दिनों में पता भी चल जाएगा कि तुम कैसे ऐश उड़ा रहे थे। सरोज के उठने से कुर्सी गुर पड़ी और भाभी को लगा कि सरोज उन पर ही चिल्लाया है और भाभी नाराज हो गई और विशाल की जगह सरोज कसूरवार हो गया वह उठ के कमरे से बाहर चला आया और अपने कमरे में आकर रोने लगा। भाभी कहने लगीं कि मैं इतना काम करती हूं फिर भी सब मुझ पर ही चिल्लाया करते हैं और वे सरोज से नाराज़ हो गईं। विशाल नहाने चला गया और नहाते हुए भी बराबर चिल्लाते जा रहा था, इतने में चचा ने आकर उसे डांटा तब.. इस एक घटना की वजह से सरोज 6 घंटे कमरे में पड़ा रोता रहा,भाभी ने कहा कि सरोज को मैं आज जान पाई कि ये कैसा है। थोड़ी देर बाद विशाल ,भाभी, भैया सब हंस हंस के बाते कर रहे थे और सरोज भाभी की नज़रों में गलत सिद्ध हो गया था.. सरोज रोते रोते यही सोंच रहा था कि भाभी को गलतशहमी क्यों हो गई, सरोज अंदर ही अंदर कुहा जा रहा था कि," लोग मुझे क्यों नहीं समझते, मेरे पिताजी के सिवा मेरा कोई नहीं है , इन लोगों को समझना चाहिएं कि बिन मां का लड़का अगर ये सब भी उससे नाराज रहेंगे तो वो अपने आंसू लेकर कहां जायेगा" खैर इन सब बातों का कोई मतलब नहीं था क्योंकि बंद कमरे में उसकी चीखें सुनने वाला कोई नहीं था,इसके बाद भाभी ने भी उससे बात बंद कर दी.. सरोज जिसका गुनाह नहीं था उसे है साझा मिल रही थी .. वह सोच रहा था कि रिश्तों कि डोर इतनी नाज़ुक होती है कि एक ही झटके में टूट जाए? भाभी सभी से अपनी बातें कह रहीं थीं ,सफाई दे रहीं थीं..लेकिन सरोज की चीखें सुनने वाला कोई नहीं था और ना ही सरोज कोई सफाई देना चाहता था, क्योंकि उसे यह अकेलापन विरासत में मिला था.. "आप लोगों से बस इतना ही आग्रह है कि रिश्ते की डोर टूटने ना दें , इतनी छोटी छोटी बातों पर गर रिश्ते टूटने लगे तब तो यह पावन वसुंधरा कण कण में बिखर जाएगी और पवित्र रिश्तों कि मान्यता ही नहीं रहेगी.. और हो सके तो दूसरों का दर्द समझने की कोशिश करें और उन्हें सहारा दें जिनको काम दर्द होता है वो तो बयां कर सकते हैं पर जिनका दर्द गहरा होता है उन्हें जरूरत होती है एक ऐसी नज़र की जो उनके बिना बताए समझ सके वरना तो सरोज की तरह ही किसी बंद कमरे में उनकी चीखें दफ़न होती रहती हैं आपने सबसे महत्वपूर्ण तथ्य देखा होगा ,"गलतशहमी की वजह से ज्यादा रिश्ते टूटते हैं उनमें दरार पड़ने लगती है" हो सके तो गलतफहमी जा शिकार ना हों और रिश्तों को सम्मान दें
निर्मल एहसास
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सोमवार, 23 मार्च 2020


हल्दी से हाथों में हीना लगी हीना से प्रिय का नाम लिखा है,
प्रियतम को पाती में प्रिया ने अपना हाल तमाम लिखा है,
नीरज एक सरोज खिले दो चेहरे पे सुखद परिणाम लिखा है,
राधा से तन पे राधा लगी है राधा ने खुद घनश्याम लिखा है
-निर्मल एहसास
#छंद #निर्मल एहसास #हल्दी_मेंहदी_रसम

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

विश्व गुरु भारत! (-निर्मल एहसास)


आज सुबह शीघ्र उठकर स्नानादि से निवृत होने के पश्चात आज चित कुछ विचलित सा लग रहा था,फिर अचानक हृदय में अभिलाषा हुई कि चलो आज बांसुरी बजाई जाये परन्तु मैं असफल रहा तो मैंने बांसुरी बजाना छोड़ दिया,फिर सोचा कि चलो कोई पुस्तक पढ़ते हैं शायद हृदय को कुछ अच्छा महसूस हो मैं बच्चन जी की मधुशाला की तरफ बढ़ा ही था कि मेरी दृष्टि यथार्थ गीता पर पड़ी जो बिल्कुल मह्यूस सी आलमारी के किसी कोने में रखी थी मुझे खुद पर बड़ा क्रोध आया क्योंकि अबकी कई दिनों से मैंने गीता नहीं पढ़ी थी। मैं गीता पढ़ने बैठ गया मेरी आदत है कि मैं कवर जरूर पढ़ता हूं कहीं पर लिखा था कि 'श्रीमद्भागवतगीता' को 'राष्ट्रीय पुस्तक' घोषित कर देना चाहिए,मेरे हृदय में विचार आया कि गीता का देवकी पुत्र भगवान ने अपने श्रीमुख से गायन किया है उनकी वाणी की अंतः प्रेरणा से सम्पूर्ण मानव जाति को जो अर्थ और सूत्र प्राप्त हुए हैं वे निश्चित ही सराहनीय हैं ,गीता मानव जीवन का सार है अतः इसे राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने में कोई विवाद नहीं होना चाहिए। इतना कहकर मैं कुछ देर तक शांत बैठा रहा जाने मस्तिष्क में क्या चल रहा था फिर अचानक से मेरे चुप्पी टूटी और मुझे खुद पर बहुत हंसी आयी और शायद समस्त हिन्दुस्तानियों पर जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, जिनको सुनकर एक पल के लिए लगेगा की इनसे श्रेष्ठ धर्मानुयायी और उनसे बड़ा देशभक्त इस अखिल ब्रह्माण्ड में में कहीं भी संभव नहीं । फिर मुझे कई स्लोगन याद आए जो शायद आप भी प्राय: लोगों के मुख से सुनते रहे होंगे, जैसे- 'हमारा भारत विश्व गुरु था' या 'सोने की चिड़िया'या 'मुझे अपना राष्ट्र बहुत प्रिय है' या 'मैं नारियों को बहुत सम्मान देता हूं'या 'हमें साफ सफाई रखनी चाहिए'वगैरह वगैरह। फिर यही लोग किसी दूसरे चौराहे पर पांच रूपए का पान चबा के चौराहे से लेकर गलियों तक पेंट करते हुए आयेंगे और सुबह उठकर अपने दरवाजे पर कूड़ा साफ करके पड़ोसी के आगे बढ़ा देंगे और फिर ये सभ्य लोग एक-दूसरे के पूरे खानदान को अपनी पवित्र गालियों से नवाजेंगे और हमेशा की तरह पुलिस आएगी और पांच-पांच सौ रुपए देकर मामला रफा-दफा हो जाएगा और समय-समय पर इन श्रेष्ठ कार्यों की पुनरावृत्ति होती रहेगी,या कि फेसबुक,ट्विटर आदि पर उसी भारत को गाली देते मिलेंगे, अपने देश में तो ये समस्या है ,अपने देश‌ में तो वो समस्या है और कुछ सभ्य लोग चौराहे पर खड़े होकर लड़कियों के निकलने पर अपने संगीत का अभ्यास करने लगेंगे,इसी तरह से अन्य खबरें आयेंगी। इतना ‌‌‌‌‌सब करने के पश्चात फिर इनकी देशभक्ति जागृत होगी फिर ये कहेंगे कि अपने देश में कोई सही कानून ही नहीं है और हर चीज के लिए एक नियम बताएंगे..आदि। अब मैं पुनः मुद्दे पर आता हूं, यह सब सुनकर ह्रदय में बहुत टीस होती है,क्यों हम लोग हर वक्त सिर्फ उलाहने देते रहते हैं,किसी श्रेष्ठ कृत्य को करने के लिए क्यों किसी संवैधानिक नियम की आवश्यकता है यदि है तो हम कितने नियम मानते हैं जोकि पहले से बने हुए हैं? कितने लोग ट्रैफिक नियम मानते हैं? कितने लोग कूड़ा डस्टबिन में ही डालते हैं? आप लोग कुछ नहीं कर सकते बस बड़ी-बड़ी बातें कर सकते हैं, गाली दे सकते हैं, अपनी गलती दूसरों पर थोप सकते हैं... क्यों हमारे देश में अखबार दुष्कर्मों की ख़बरों से भरे रहते हैं आखिर क्यों? कितने लोग गीता पढ़ते हैं? जब नहीं पढ़ते तो क्या करेंगे 'राष्ट्रीय पुस्तक'घोषित करके? जब आप लोग अपनी सोच पाक नहीं कर सकते तो 'विश्वगुरु' बनकर दुनिया को क्या उपदेश देंगे? भारत ऋषि-मुनियो का देश है यह कहकर अपने आपको महान बताने से कुछ नहीं होगा। रही बात महिला संरक्षण की तो जब आप महिलाओं का सम्मान ही नहीं करते तो कितने भी कानून बनाये जाएं आपकी हैवानियत को नहीं मार सकते क्योंकि आप स्वयं ही उसे जन्म देते हैं तो आप ही मार भी सकते हैं; डॉ.राहत इंदौरी का एक शेर है कि: "ना राह से,न रहगुजर से निकलेगा, तुम्हारे पांव का कांटा तुम्ही से निकलेगा" आखिर क्यों आप लोग चाहते हैं कि एक व्यक्ति जो किसी प्रशासनिक सेवा पर है बस उसी की सब ज़िम्मेदारी है ,क्या यह मुल्क सिर्फ उसी का है? हमारा नहीं? हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं? यदि देश हमारा है तो जिम्मेदारी भी होगी और इसे निभाना भी होगा। किसी एक व्यक्ति से यह उम्मीद रखना मूर्खता होगी बल्कि खुद से उम्मीद रखनी है , हमें बस अपना दायित्व ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌निर्वाह करना है और मानसिक विकलांगता को दूर करना है। "आत्म दीपो भव:" और मेरा मानना है कि भारत को 'विश्वगुरु' बनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत आज भी 'विश्वगुरु' है, भारत 'सोने की चिड़िया' आज भी है बस चिड़िया थोड़ा उड़ गई है, हो सके तो उसे ही निहार लो । जिस दिन हमने स्वयं को जान लिया उसके पश्चात हमे बाहर झांकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। धन्यवाद ...✍️✍️✍️ निर्मलएहसास 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌-©निर्मलएहसास गोला-गोकर्णनाथ,लखीमपुर-खीरी,उ.प्र.(भारत) Gmail: nkvnirmal7777@gmail.com

कोहबर की शर्त

गुनाहों का देवता आपने पढ़ी ही होगी,गुनाहों का देवता पढ़ते हुए अक्सर लगता था कि ऐसी मुकद्दस प्रेम कहानी भला कहाँ मिलेगी..धर्मवीर भारती अद्विती...