बुधवार, 29 मार्च 2023

कोहबर की शर्त

गुनाहों का देवता आपने पढ़ी ही होगी,गुनाहों का देवता पढ़ते हुए अक्सर लगता था कि ऐसी मुकद्दस प्रेम कहानी भला कहाँ मिलेगी..धर्मवीर भारती अद्वितीय है .. आज भी पाठकों के मानस पटल पर सुधा और चंदर छाए रहते है .. मुझे अक्सर गुनाहों का देवता पढ़ते हुए ऐसी अन्य कहानी की तलाश रही है .. यही उत्सुकता मुझे बहती गंगा तक खींचकर ले गई..फिर उसके फितूर में बहते रहे एहि पार गंगा ओहि पार जमुना.. उसके बाद कभी शरतचंद्र के उपन्यास,बंकिम के विषवृक्ष बन गए तो कभी रवींद्र की चोखेर बाली, आँख की किरकिरी बनकर चुभती रही तो कभी बंकिम की कपालकुंडला को किसी नवकुमार ने नदी के जल में अंतर्हित होते देखा और स्वयं भी एक छलांग लगाकर जल में जा गिरा, कपालकुंडला को न पाया तो स्वयं भी जल से न निकल पाया ... यही तलाश आज कोहबर की शर्त बन गई । कोहबर की शर्त 1965 में केशव प्रसाद मिश्र द्वारा रचित उपन्यास है .. इसी पर बाद में नदिया के पार जैसी प्रसिद्ध फिल्म बनी .. इसने अभी तक मुझे कोहबर की शर्त पढ़ने से रोक रखा था,मुझे लगता था नदिया के पार कई बार देख चुका हूँ तो उपन्यास क्या ही पढ़ना .. लेकिन मैं गलत था यह फिल्म तो महज एक हिस्सा भर है इस कहानी का ..असल तो बहुत आगे है..1949 में गुनाहों के देवता के चंदर-सुधा कब 65' में और गहरे होकर चंदन-गुंजा में पर्यवसित हो गए हैं पता नहीं या फिर सब कहानियों के धागे कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं,खैर.. जिनको ये वहम हो गया है कि वो पत्थर हो गए हैं या नहीं रो सकते तो शायद उनको कोहबर की शर्त पढ़नी चाहिए .. किताब के बारे में कुछ इसलिए नहीं लिख रहा क्योंकि आपके उत्साह और आनंद को अपने दृष्टिकोण में संकुचित नहीं करना चाह रहा और शायद बचा भी कुछ नहीं है लिखने के लिए.. या फिर मैं कुछ कह ही पाऊँ .. बचे हैं तो बस कभी न भूलने वाले चेहरे और उनकी कथा.. चेहरे जो मन ने बनाए हैं ह्रदय की कूँची से.. बचे हैं तो कुछ नाम जो कब से कभी गंगा पर नाव तो कभी सोना नदी पर दीपासत्ती का वरदान बनकर मस्तिस्क में गूंज रहे हैं.. चंदर-सुधा चंदन-गुंजा गुंजा-ओंकार सुधा- कैलाश चंदर-पम्मी चंदर-विनती चंदन-बाला प्रोफेसर साहब वैद्य जी गेसू सरला दसरथ कहीं सुधा कहती है मौजें भी हमारी हो न सकीं तूफान भी हमारा हो न सका.. तो कहीं भीषड़ उदासी में सुनाई देता है ‘ले बाबुल घर आपनो,मैं चली पिया के देश .. और इन सबके बीच अनदेखा रह जाता है कोई रामू.. निर्मल एहसास

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!

अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
जानती हो सामने आओगी फिर तुम,
हार जाऊंगा समर जीता हुआ,
या कि होती प्रेम की देवी सरीखीं तुम,
देख पातीं यह हृदय रीता हुआ, इसलिये यह इन्द्रधनुषी रंग भर लो,
ओढ़नी धानी न मेरे हांथ आये,
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे! इस वरष ना साथ आयें..
इस वरष ना साथ आयें..
.
फिर यदि अमृत घड़ों में विष मिलेगा,
और हालाहल नहीं मैं पी सकूंगा,
मैं नहीं शिव हूं मनुष वासुंधरा का,
बनके शिव हरगिज नहीं मैं जी सकूंगा,
मुझसे अपने मोंह की चूनर हटा लो,
आंख में मेरी न ये बरसात आये,
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
इस वरष ना साथ आयें..
.
जानता हूं तुम बिना पतझड़ है मौसम,
और यादों का सावन पीर देगा,
लौटकर तुम पास भी ना आ सकोगे,
और यह संताप मन को चीर देगा,
फिर भी तुम खिलना ही मन उपवन में अपने,
मेरी खिड़की पर ना यह वातास आये,
अपनी सुधियों से कह दो ना, सुधे!
इस वरष ना साथ आयें..
इस वरष ना साथ आयें..
- निर्मल एहसास

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

मन संन्यासी हो जायेगा..

मन सन्यासी हो जायेगा..
प्रतिबन्धों से आहत होकर
चीखें जब बाहर निकलेंगी,
और दुनिया के कानों में भी
दर्द सुनाई दे जायेगा,
इस दुनिया की रीति अलग है
प्रेम मुनासिब यहां नही अब,
लोगों को इन बातों की जब
वक्त गवाही दे जायेगा,
पत्थर के महलों तक जब तक मेरे आंसू पहुंचेंगे,
देह राख हो जायेगी और मन अविनासी हो जायेगा,
मन सन्यासी हो जायेगा..
मेरी आंखों के कुछ आंसू
जो इन गीतों में खोये हैं,
एक दिन चेहरे के आंगन में
बादल बनकर छा जायेंगे,
सावन की मदमस्त हवाएं
जब खुशबू से अलग लगेंगी,
और पपीहे कोयल भी
मेरा एहसास दिला जायेंगे,
जब तेरे अधरों पर छाकर बोलेंगे कुछ गीत हमारे,
गीत अमर हो जायेंगे और मन‌ वनवासी हो जायेगा,
मन सन्यासी हो जायेगा..
- निर्मल एहसास

बुधवार, 26 जनवरी 2022

यशोधरा

प्रेम का सबसे गहरा मानक बतला देना,
महाकाव्य का मझे कथानक बतला देना,
जीत-पराजय हंसते हंसते सह लेंगे,पर
छोड़ के जाना कभी अचानक बतला देना..
.
संन्यासी मन हो जीवन का युद्ध‌ बने थे,
यज्ञ की आहुति से भी ज्यादा शुद्ध बने थे,
बतला देते यशोधरा को भी कुछ दर्शन,
छोड़के उसको जब तुम गौतम बुद्ध बने थे..
निर्मल एहसास

मंगलवार, 25 जनवरी 2022

सहसा चटकेगी कविता...

सहसा चटकेगी
'कविता
उस कविता के सार से
एक 'कहानी' गढूंगा
फिर बहुत सारी
..कहानियां जोड़कर
लिखूंगा 'उपन्यास'
और उसमें तुम मैं और
जीवन के अलग-अलग रं ग
बि ख रे हों गे
किसी और के नाम से
अपनी मेज पर कोहनी टिकाए,
खाली पन्नों पर..
अक्सर सोचता हूं
..'मैं'
निर्मल एहसास

घेरे में..

अमानवीकरण के इस दौर में मानवता की बात करना ही शायद किसी को हास्यास्पद लगे खैर... समाज में परिवर्तन के साथ ही सत्य की परिभाषा भी परिवर्तित हुई है...न्याय-अन्याय के मानक बदले हैं। कोई घटना घृणित है या नहीं इस तथ्य का आकलन हमारी तात्कालिक राजनीतिक और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर होता है । हम किसी कृत्य या कुकृत्य का निर्धारण करने से पूर्व अपनी राजनीतिक या धार्मिक मान्यताओं को सबसे आगे रखते हैं और तटस्थता से न्याय नहीं कर पाते। अब अगर राष्ट्र में कुछ भी असंगत हुआ है तो यह खोजना कि किस तरह अपनी मान्यताओं से उसकी असम्बद्धता निर्धारित की जाये और दलदल में पत्थर इस तरह मारा जाये कि मुझे छोड़कर कीचड़ सामने वाले की कमीज पर जा गिरे... जब आप पहले से ही कुछ मानकर चलते हैं और उस घेरे से बाहर नहीं निकल पाते, क्योंकि आपका अहम् आप पर बहुत ज्यादा हावी है...और तब शुद्ध न्याय की उम्मीद ही व्यर्थ है... -निर्मल एहसास

शनिवार, 20 मार्च 2021

चिंटू देशभक्त

देशभक्त होना एक बात है और दिखाना दूसरी.. यह गजब माहौल चला है देश में जहां आपकी देशभक्ति का अनुमान आपकी सोशल मीडिया पोस्ट से लगाया जाता है। मतलब आप जब तक एक पोस्ट ना चिपका दें फेसबुक पर आप की खुद्दारी शंका के घेरे में ही रहती है। आप जितना ज्यादा पोस्ट करें उतना ही बड़े राष्ट्रभक्त हैं..भले ही आप देश के लिए कार्यरत हैं लेकिन अगर आपने पोस्ट नहीं की तो आप गद्दार हैं,फिर तो आपके हिसाब से हमारे बहुत से पुलिसकर्मी, सेनानी, सफाई कर्मी और अन्य देश की सेवा में कार्यरत लोग जो फेसबुक इत्यादि नहीं चलाते हैं या उन पर पोस्ट नहीं करते वह तो बेखबर है हर घटना से कि देश में क्या हो रहा है और उन्हें किसी भी घटना से कोई इल्म ही नहीं...मतलब आप पोस्ट कर दें बस फिर चाहें खामोस रहें...मुझे कई लोग मैसेज करके कह रहे हैं कि आपने प्रेम पर कविता लिख दी इस समय...ऐसा कौन सा अपराध कर दिया भाई..मैं अगर गरीबों में खाना बांट दूं या बांट रहा हूं या गरीबों की सेवा कर दूं या मदद कर दूं तो कोई बात नहीं,मेरी निष्ठा तब तक सत्य नहीं मानी जाएगी जब तक मैं गरीबी का जिक्र अपनी फेसबुक वॉल पर ना कर दूं... हमारे बहुत से मित्र ऐसे हैं जिन्हें रामायण,महाभारत, गीता के 5 श्लोक या चौपाई भी कंठस्ठ नहीं लेकिन बातें ऐसे करेंगे जैसे उनसे बड़ा धर्म मानने वाला कोई है ही नहीं..आप स्वयं पढिये तब दुनिया पढ़ेगी.. आप संघर्ष करिये,वास्तव में लड़िये,मानवता के लिये, राष्ट्र के लिये,अन्याय के खिलाफ आवाज उठाइए लेकिन दिखावा ना करिये.. ज्ञान प्रकाश आकुल दादा की पंक्तियां याद आती हैं "अंगारों की बारिश में कुछ फूल बचाना फूलों पर कविता लिखने से बेहतर है.." तो यह जरूरी नहीं कि आप लिखें बल्कि यह जरूरी है आप अन्याय के खिलाफ आवाज उठायें, सत्य के पक्ष में रहे, अडिग रहें..तब जीत तय है🙏 *अब मुझे मैसेज करके तथाकथित चिंटू देशभक्त मेरा कर्तव्य पथ न याद दिलायें, पहले ॐ का उच्चारण करना सीख कर आयें...मुझे कब बोलना है कब चुप रहना है इसका निर्णय आपकी बौद्धिक क्षमता से परे है..
निर्मल एहसास

कोहबर की शर्त

गुनाहों का देवता आपने पढ़ी ही होगी,गुनाहों का देवता पढ़ते हुए अक्सर लगता था कि ऐसी मुकद्दस प्रेम कहानी भला कहाँ मिलेगी..धर्मवीर भारती अद्विती...